क्यों ना! आज एक नए सफर का,
आगाज कर लें, अनछुए कई,
मुकाम अभी बांकी है----
उनके क़दमों के निशां पे,
चल लिए बहुत दिन ,
चलकर मिले सके सुकूं,
सबको जिस पथ पे,
निशां वो बनाने अभी बांकी है..
आगाज कर लें, अनछुए कई,
मुकाम अभी बांकी है----
उनके क़दमों के निशां पे,
चल लिए बहुत दिन ,
चलकर मिले सके सुकूं,
सबको जिस पथ पे,
निशां वो बनाने अभी बांकी है..
वो नाप चुके पूरी ज़मीं तों क्या,
हमारे हिस्से सातों समुन्दर
और सातों आसमान अभी बांकी है..
चाहे चूर हो गये हैं थक कर,
फिर भी सफर बरक़रार कर लें,
कि! हिम्मंत नहीं हरा करते लड़ाके,
थोड़ी ही सही, पर जान अभी बांकी है
A
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