Wednesday, 5 June 2013

थोड़ी ही सही, जान अब भी बांकी है



 















क्यों ना! आज एक नए सफर का,
आगाज कर लें, अनछुए कई,
मुकाम अभी बांकी है----

उनके क़दमों के निशां पे,
चल लिए बहुत दिन ,
चलकर मिले सके सुकूं,
सबको जिस पथ पे,
निशां वो बनाने अभी बांकी है..



वो नाप चुके पूरी ज़मीं तों क्या,
हमारे हिस्से सातों समुन्दर
और सातों आसमान अभी बांकी है..

चाहे चूर हो गये हैं थक कर,
फिर भी सफर बरक़रार कर लें,
कि! हिम्मंत नहीं हरा करते लड़ाके,
थोड़ी ही सही, पर जान अभी बांकी है
A


अमित रिन्वी

 











P.S - Images Source "Google Images"


Tuesday, 4 June 2013

ये इश्क हैं कैसा??



नादान हैं, वो बेचारे सारे,
मज़ा मोहब्बत को समझ बैठे हैंA
में चोट खा चुका तो कहता हूँ,
हर पल दर्द ये बडता है जाता,
जैसे छोटी सी चिंगारी धीरे-धीरे,
करती हैं खाक विशाल वन को...
हस्ती जो मिटा दे, ये दर्द भी हैं,
कुछ कुछ उस आग जैसा....

गुमा ये था मुझे की अकेला हुँ मैं,
इस जहां में, जो हुआ इश्क में बर्बाद,
मगर हैरान हुँ आज इस बात पे,
कि हर आशिक़ का हाल है, यहाँ...
कुछ कुछ मेरे ही हाल जैसा.....
 
पा तो न पाया तुझे मैं कभी भी,
तो सोचा भूल जाऊँ, कुछ तो आराम मिलें,
और भुला भी देता तुझको मैं, सनम,
मगर भुलाना मुश्किल यूँ हो गया,
हर चेहरा  लगता हैं, यहाँ...
कुछ कुछ तेरे चेहरे जैसा....


 अमित रिन्वी