अभी कुछ 20 दिन ही बीते होंगे राजू की माँ का देहांत हुए, 13 वर्ष की आयु में जब
उसे अनाथ शब्द का मतलब भी नहीं पता था- ये दिन देखने पड़ गये राजू के पिता तो 5 बरस पहले ही चल
बसे थे तब से उसकी माँ जैसे-तैसे दूसरों के घर झाड़ू पोछा कर अपना व अपने दो बच्चों
का भरण-पोषण कर रही थी लाख दुःख देने वाले भगवान को भी उसने कभी कोषा नहीं, उसे
विश्वास था की इस काली रात के बाद सुबह आएगी और उसका राजू पढ़-लिख कर अधिकारी बनेगा बेचारी कहाँ जानती थी की उसके चेहरे की फीकी हंसी भी कुदरत से
बर्दास्त नहीं हो पायेगी अधिक काम और अल्प आहार के कारण बीमार पड़ गयी और बीमारी भी
उसका दम निकाल कर ही मानी उसके तों कष्टों का अंत हो गया किन्तु पीछे रह गयी दो
नन्ही जान
राजू ने गांव वालों को कहते सुना था कि उसकी माँ कि मृत्यु हो
गयी है और वो और उसका भाई अनाथ वो नासमझ कहाँ समझ पाता इन मनहूस शब्दों का मतलब
उसे तो बस इंतज़ार था कि कब उसकी माँ आएगी और दोनों भाइयों को प्यार से गोद में
बिठा कर खाना खिलाएगी और फिर लोरी सुना कर सुला देगी उसकी आँखें एक पल को भी
दरवाजे से हटी नहीं थी, mमाँ को ना आना था और ना वो आई आँखों के कोने में आंसू
ज़रूर आ गये एक-एक बूँद आंसू जमा होता गया और फिर टूट पडा मासूम के सब्र
का बांध आंसूओं कि धारा बह पड़ी शायद उसे अहसास हो चुका था कि अब उसकी माँ नहीं
आएगी
बहुत देर तक रोता रहा नजरें अब भी दरवाजों पर टिकी थी
सुबकियां दहाडों में बदल गयी लेकिन न कोई सुबकियां देखने वाला था न कोई दहाड़े सुनने
वाला, जब मन कुछ हल्का हुआ तो नज़रें दरवाजों से हट कर छोटे भाई दीपू
पर पड़ी 6 साल का
दीपू भूख से बिलखाता सो गया था, खुद राजू को भी भूख सताने लगी थी सच ही कहते है
भूख से बड़ी तकलीफ़ कोई और नहीं होती है छोटा भाई जागेगा तो खाना माँगेगा
ये ख्याल भी सताने लगा था कल तक कोई न कोई गांव वाला आके खाना दे जाता था पर कौन
किसी को पूरी जिंदगी खिला सकता है आज कोई नहीं आया दिन के 1 बज चुके थे, राजू
को शायद अंदेशा हो गया था कि आज कोई नहीं आएगा खाने का इंतज़ाम उसे
खुद ही करना पड़ेगा समय ने समय से पहले ही उस मासूम को दुनियादारी
कि समझ दे दि थी शायद, कहते है जब इंसान के उपर विपत्तियों का पहाड़ टूटता है तो
उसका सामना करने का हौसला भी अपने आप ही आ जाता है
rajराजू खड़ा उठा और चल पड़ा अपने आंसू आप पोंछ खाने का
इंतजाम करने, नन्ही सी जान कहाँ जाये कैसे अपनी और अपने भाई कि भूख मिटाए ? खैर!
घर में बैठ कर तो कुछ होने वाला नहीं था और भाई जब नींद से जागेगा तो अपने बड़े
भाई को न पाकर व्याकुल होगा या घर से बहार निकल जाये तो ? राजू ने दरवाजा
बहार से बंद कर दिया ताकि छोटा भाई कहीं जा न पाए उसके पाऊँ उठाये नहीं उठ रहे थे
जब मंजिल का पता न हो तों रास्तों पर आगे बढना मुश्किल हो ही जाता
है, सबसे पहले वो मंजरी ताई के घर गया हाथ फ़ैलाने, माँ कि देहांत के बाद
एक-दो बार वो आई थी राजू के घर और दयावश खाना भी खिलाया था, मंजरी ताई घर पे होती
तो ज़रूर कुछ मदद करती पर घर पर उनका शराबी पति मिला जो नशे में धुत् था खाना देना
तो दूर उलटे फटकार कर भगा दिया
गाँव के बीच ही एक बरगद का बड़ा पेड़ था, जहाँ कभी राजू अपने दोस्तों
के साथ आँख-मिचौली खेला करता था उसी पेड़ के निचे आज राजू बैठा रो रहा था और कोई
सखा कोई साथी भी साथ नहीं था जाने कौन से पाप कर बैठा था वो नादान पिछले जन्म में
जिसकी इतनी भीषण सजा वो आज भुगत रहा था अब तक वो भी भूख के मारे बेहाल हो चुका था
अपने नन्हे से हाथों से अपने पेट को जोर से भींच लिया था उसने और आँखें बंद कर के
आपनी माँ को याद करने लगा रोज सुबह दोनों भाईयों को तैयार कर
स्कूल भेज दिया करती थी दिन में काम से आकार प्यार से खाना खिलाती और रोज शाम को
लोरी सुना सुला देती कभी कभी प्यार से सर पर हाथ फेर कर कहती “राजू तू मन
लगा कर पड़ाई कर बड़ा होकर तू बहुत बड़ा आदमी बनेगा, गाड़ी, बंगला, नौकर-चाकर सब होंगे
तेरे पास” और राजू सब सच समझ बहुत खुश होता और
खूब मन लगा कर पढाई भी करा करता, माँ का दिया वो सपना अब कभी पूरा न हो
पायेगा, न ही कभी किताबें होंगी उन हाथों में और न ही होगी चहरे में मुस्कान
यादों कि उधेड़ बुन में ही राजू को उसकी माँ के वो शब्द
आये जो उसने मरने से कुछ समय पहले उसका हाथ अपने हाथ में लेके कहे थे “राजू! मेरे
लाल मुझे माफ़ कर देना, तुझे बहुत दुःख झेलने होंगे और छोटे भाई कि
ज़िम्मेदारी भी है तेरे नन्हे कंधों पर हो सके तो उसको पढ़ा-लिखा कर बड़ा आदमी बनाना मैंने जो तेरे लिए सोचा था वो अब तुझे अपने
दीपू के लिए करना है हो सके तो तू भी पढ़ने की कोशिश करना, बेटा
में जानती हूँ ये सब अशंभव होगा तेरे लिए मगर अब सब तुझे ही करना हैं और हाँ!
लालाइन के पास चला जाना मैंने उनसे बात कर ली है वहीँ तुम्हारा ख्याल रखेंगी